भारत में रक्षा सौदों को लेकर विवाद न हो, भ्रष्टाचार के आरोप न लगें, विपक्ष का हंगामा न हो और मामला अदालत तक न जाए तो बड़ी बात मानी जाती है.
बुधवार को रफ़ाल फ़ाइटर प्लेन जब भारत की ज़मीन पर लैंड हुए तो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने सवाल किए, "क्या सरकार इन सवालों के जवाब देगी? प्रत्येक विमान की क़ीमत 526 करोड़ रुपये के बजाय 1670 करोड़ रुपये क्यों दी गई? 126 की बजाए सिर्फ़ 36 विमान ही क्यों ख़रीदे? हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बजाए दीवालिया अनिल अंबानी को 30,000 करोड़ रुपये का कांट्रैक्ट क्यों दिया गया?"
लेकिन ऐसा नहीं है कि भारत में रक्षा सौदों को लेकर कोई पहली बार सवाल पूछा जा रहा है.
ख़ुद राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी जब देश के प्रधानमंत्री (1984-89) थे तो बोफ़ोर्स तोप के सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे.
साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई कारगिल की लड़ाई में मरने वाले सैनिकों के लिए ताबूतों की ख़रीद के मामले में उस समय की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे.
भारत में रक्षा सौदे को लेकर लगने वाले आरोपों का इतिहास सिर्फ़ बोफ़ोर्स के मामले से नहीं शुरू होता है. ये कहानी भारत की आज़ादी के समय से चली आ रही है.
आइए हम आपको भ्रष्टाचार के कुछ ऐसे मामलों के बारे में बताते हैं.
जीप ख़रीद मामला
आज़ाद भारत में ये कथित भ्रष्टाचार का पहला बड़ा मामला था. 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय सेना को जीप की जल्द ज़रूरत थी.
उस वक़्त ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त रहे वीके कृष्णा मेनन ने सरकारी ख़रीद के नियमों को कथित तौर पर नज़रअंदाज़ करते हुए 80 लाख रुपये की लागत से एक विदेशी कंपनी से सेना के लिए जीप खरीदने का सौदा किया था.
इस सौदे के तहत विदेशी कंपनी को लगभग पूरी रक़म का भुगतान तो कर दिया गया लेकिन महज़ 155 जीप की डिलेवरी की गई और वो भी दोनों पक्षों के बीच युद्ध विराम हो जाने के बाद.
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने इस सौदे को स्वीकार कर लिया. उस समय गृह मंत्री रहे गोविंद वल्लभ पंत ने सितंबर, 1955 में कथित जीप घोटाले की जाँच बंद करने की घोषणा की जबकि अनंतशयनम अयंगर जाँच समिति ने इसके उलट अपनी सिफ़ारिश दी थी. इसके कुछ समय बाद वीके कृष्णा मेनन नेहरू कैबिनेट में शामिल हो गए थे.
बोफ़ोर्स मामला
बोफ़ोर्स मामले ने 1980 और 1990 के दशक में गांधी परिवार और ख़ासकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की छवि को गहरा धक्का पहुँचाया.
बाद में सोनिया गांधी पर भी बोफ़ोर्स तोप सौदे के मामले में आरोप लगे जब सौदे में बिचौलिया बने इतालवी कारोबारी और गांधी परिवार के क़रीबी ओतावियो क्वात्रोकी अर्जेंटीना चले गए.
साल 1986 में भारत ने स्वीडन से लगभग 400 बोफ़ोर्स तोप ख़रीदने का सौदा किया था जिसकी क़ीमत लगभग एक अरब तीस करोड़ डॉलर थी.
बाद में 'द हिंदू' अख़बार की चित्रा सुब्रमण्यम ने अपनी रिपोर्टों में भंडाफोड़ किया था कि इस सौदे में कथित तौर पर 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई थी.
इस मामले ने भारत में इतना तूल पकड़ा कि 1989 में राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी लोकसभा का चुनाव हार गई थी.
64 करोड़ रुपये के कथित रिश्वत के इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में राजीव गांधी पर कोई आरोप साबित नहीं हो पाया.
कारगिल युद्ध के दौरान ताबूत की ख़रीद का मामला
भारत के रक्षा मंत्रालय ने अमरीका की एक कंपनी से अल्युमीनियम के ताबूत और बॉडी बैग ख़रीदे थे और उनका इस्तेमाल युद्ध क्षेत्र में शहीद हुए सैनिकों के शव सम्मानजनक तरीक़े से घर पहुँचाने के लिए किया जाना था.
साल 1999-2000 के दौरान ऐसे 500 अल्यूमीनियम ताबूत और 3000 शव थैले ख़रीदने के लिए एक अमरीकी कंपनी को प्रति ताबूत 2500 अमरीकी डॉलर और शव थैलों के लिए 85 अमरीकी डॉलर प्रति थैले के हिसाब से भुगतान किया गया जो कि बहुत बढ़ी हुई दर थी.
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